Baadi Fair (बाड़ी का मेला)
'बाड़ी का मेला' हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन के अर्की तहसील (Tehsil ARKI of Distt SOLAN) में मनाया जाता हैl यह मेला पांडवों की यादगार में मनाया जाता है. ' बाड़ी का मेला' बाड़ी नमक स्थान पर आयोजित होता है. यह मेला आषाढ़ मॉस की संक्रांति को इस स्थान पर आयोजित किया जाता है. इस मेले की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है. बाड़ी अर्की से लगभग 26 की.मी दूरी पर स्थित है. इस स्थान पर पहुँचने क लिए अर्की-भराड़ी घाट पर चलकर बीच रस्ते में पिप्लुघाट नामक स्थान से 10 की.मी की दूरी पर है. पिप्लुघाट से यह मार्ग अगर आप अर्की से आ रहे हैं तो बायीं ओर मुड़ जाता है और यदि आप भराड़ी घाट की ओर से जा रहे हैं तो यह रास्ता दायीं ओर मुड़ जाता है. बाड़ी धार का स्थान एक सुन्दर मनमोहक स्थान है. इसके चारों ओर हरियाली हे हरियाली दिखाई पड़ती है.
कहा जाता है की बाड़ा देव से मांगी मुराद पूरी हो जाती है जिस कारण श्रद्धालु दूर-२ से इस मेले को देखने के लिए यहाँ पहुँचते हैं.
इस मेले की पूर्व संध्या पर इस स्थान पर जागरण का आयोजन होता है. इस मेले में भारी भीड़ होती है. माना जाता है की जितनी भीड़ यहाँ मेले के दिन होती है उससे दो-तीन गुना भीड़ इसकी पूर्व संध्या पर जागरण वाली रात को होती है. मेले की पूर्व संध्या पर यहाँ कीर्तन भजन होता है. मेले की पूर्व संध्या पर ढोल-नगाड़ों के साथ दो पूज(पूजा) बाड़ी की शिव मंदी के लिए रावण होती है. हालांकि मेले वाले दिन यहाँ तीन पूजा देखने को मिलती है. पूजा से अभिप्राय यह है की जब पाद्न्वों की मूर्तियाँ बाड़ी क लिए भगवान् शंकर से मिलन करवाने के लिए बाड़ी की ओर से जाती है तो उसके पीछे श्रद्धालु एकाएक जथ धुल नगाड़ों की साथ बाड़ी के लिए प्रश्थान करती हैं. जिसे 'पूज अथवा पूजा' के नाम से पुकारा जाता है. यह नाम प्राचीन काल से दिया जा चूका है. रात को केवल दो हे पूजा बाड़ी क लिए प्रश्तन करती है जिसमे पहली बुइला(सरयांज) और दूसरी देवस्थल(चौंरटु) से जाती है. तीसरी पूजा रात के समय यहाँ पर शामिल नही होती है. कारण यह है की कोइला सनोग से आने वाली पूज लगभग 10 घंटे का पैदल रास्ता तय करना पड़ता है जो रात में संभव नही है. इसलिए कोइला सनोग की श्रद्धालु अपना पूर्व संध्या का काम भी मेले वाले दिन हे करते हैं. मेले के दें मूर्तियाँ पालकियों द्वारा बाड़ी तक पहुंचाई जाती है. इस मेले में पांड्वो का सम्मान देने के लिए सात धुनें बजायी जाती है. जिसे 'बेल' कहतें हैं. देवथल और बुइला की पूज वाले लोग रात को भी इस बेल को बजाते हैं. क्योंकि कोइला सनोग वाली पूज रात को नही आ पति, इसलिए वहां की पूज वाले लोग दिन को दो-२ (बाजे) बजाकर रात का कार्य पूरा कर देते हैं.
मेले वाले दिन लगभग 4 - 5 बजे पांडवों का मेल भगवान् शंकर और माता पार्वती से होता है. मेले वाले दिन पूजा पहुँचने के बाद एक फेरी मंदिर क चारो और लगायी जाती है. जिसमे उन भेड़ों को घुमाया जाता है जो लोगों द्वारा मन्नत के रूप में लाये जाते हैं. बाद में इन भेड़ों की बलि दी जाती है. हर साल 10 - 15 भेड़ों की बलि इस मेले में दी जाती है. इसके साथ ही मानो मेले का समापन हो जाता है. लोगों की धारणा है की इस मेले में जो भी व्यक्ति सच्चे मनन से पुकार करता है उसकी मुराद ज़रूर पूरी होती है.
प्रस्तुति - कर्मचंद
Thanks for your valuable information about deo badhi wala ji fair.
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